Mere Mind ki shoch

Vipeenchandrapal---- (1)--शत्रु के गुण को भी ग्रहण करना चाहिए।
अपने स्थान पर बने रहने से ही मनुष्य पूजा जाता है।
सभी प्रकार के भय से बदनामी का भय सबसे बड़ा होता है।
किसी लक्ष्य की सिद्धि में कभी शत्रु का साथ न करें।
 आलसी का न वर्तमान होता है, न भविष्य।
सोने के साथ मिलकर चांदी भी सोने जैसी दिखाई पड़ती है अर्थात सत्संग का प्रभाव मनुष्य पर अवश्य पड़ता है।
ढेकुली नीचे सिर झुकाकर ही कुँए से जल निकालती है।
अर्थात कपटी या पापी व्यक्ति सदैव मधुर वचन बोलकर अपना काम निकालते है।
सत्य भी यदि अनुचित है तो उसे नहीं कहना चाहिए|
 समय का ध्यान नहीं रखने वाला व्यक्ति अपने जीवन में निर्विघ्न नहीं रहता।
 जो जिस कार्ये में कुशल हो उसे उसी कार्ये में लगना चाहिए।
(2)---उड़ने दो मिट्टी को आखिर कहाँ तक उड़ेगी.... हवाओं ने जब साथ छोड़ा तो जमीन पर ही गिरेगी..... जो लोग आलोचना से डरते हैं, वे जीवन में कुछ नहीं कर पाते हैं। सफर जितना कठिन होता है, मंजिल उतनी ही शानदार होती हैं।। 
by Vip.chandra

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